
कोई भी पूजन के पहले संकल्प क्यों किया जाता है? क्या होता है संकल्प?
हम कोई भी पूजन, विशेषकर किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए जब भी करते हैं तब कर्मकांड की विधि अनुसार सर्व प्रथम संकल्प किया जाता है, जिसकी एक विधि है, जो पंडित जी हाथ में जल कुश, पुष्प आदि लेकर करवाते हैं ।
संकल्प एक तरह से दॄढ प्रतिज्ञा या शपथ है जिसमें हम जल, अग्नि (दीपक) आदि के समक्ष उनको ही साक्षी मानकर भगवान् / देवता आदि (जिनसे भी हम अपनी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं) से कहते हैं (शपथ लेते हैं) की हम (स्वयं का नाम गोत्र आदि से परिचय ) – किस काल में किस स्थान पर किस मनोकामना की पूर्ति के लिए क्या कर्म (पूजन, अनुष्ठान) करने जा रहे हैं, ।
आवश्यक नहीं की संकल्प सिर्फ कामना की पूर्ति हेतु पूजन के लिए ही किया जाता है, अक्सर नित्य पूजन निष्काम होता है उसमें संकल्प में भगवान् की प्रसन्नता के हेतु ये कर्म कर रहे हैं ऐसा बोलकर भी संकल्प लेते हैं। पर सकाम और निष्काम दोनों ही संकल्पों में काल का विवरण हम आवश्य देते हैं।
वर्तमान लेख में पूरे संकल्प का अर्थ महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि जो सृष्टि के सबसे बड़ा रहस्य है वह है संकल्प में
काल का विवरण!
काल का विवरण न जानना ही सनातन धर्मावलंबियों में अश्रद्धा और अविश्वास का कारण–
हमारे इतिहास ग्रंथों में, पुराणों में, बहुत से ऐसे विवरण हैं जो हमें बड़े विस्मय में दाल देते हैं और चूंकि हमको सही समाधान नहीं मिलता तो हम धर्म पर और अपने शास्त्रों पर ही अविश्वास करने लगते हैं ।
उदाहरण के लिए:
-सतयुग में त्रेता युग में ऋषि-मुनि आदि हज़ारों वर्ष की तपस्या में रत रहते थे
-सतयुग की कथाओं में मनुष्य का पशु पक्षियों से भी वार्तालाप होता था
– महाबली भीमसेन में १० हज़ार हाथिओं के बराबर बल था।
-हनुमान जी ने अनेकों राक्षसों को जिन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त था उन्हें अपनी पूंछ में लपेटकर अंतरिक्ष में फेंक दिया था
काल का विवरण अगर हम समझें तो इन सभी रहस्यों को जान जाएंगे
संकल्प मन्त्र में काल विवरण!
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः ।ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतित मे कलियुगे, कलि प्रथम-चरणे, बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे….क्षेत्रे नगरेग्राम……..नाम – 1) संवत्सरे……2) मासे,’ ……3) (शुक्ल / कृष्ण) पक्षे…. .4) तिथौ ‘…. 5) वासरे’….6) गोत्र : ‘…. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहम् * प्रातः,(मध्याह्ने, सायं) सर्वकर्मसु शुद्ध्यर्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थंश्रीभगवत्प्रीत्यर्थं च अमुक कर्म करिष्ये।
१ संवत्सर का नाम, २ महीने का नाम, ३ पक्ष का नाम, ४ तिथि का नाम, ५ दिन का नाम, ६ अपने गोत्र का नाम….
यही संकल्प के मन्त्र सभी पूजन के प्रारंभ में विधि पूर्वक उच्चारित किये जाते हैं । इनमें भगवान् विष्णु नाम स्मरण पश्चात “ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि” से “कलि प्रथम-चरणे, बौद्धावतारे” तक का अर्थ ठीक-ठीक समझने से सनातन धर्म में युग युगान्तर के भेद, चमत्कारी कथाओं के अधिकतर रहस्य समझ आ जायेंगे और श्रद्धा विश्वास दॄढ होगा।
(काल विवरण जो अंकों में (१-६) है वह हम जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस दिन और समय के तिथि वार नक्षत्र आदि का उच्चारण है, वर्तमान लेख के विषय के लिए उसे समझना आवश्यक नहीं है ।)
इस लेख में हम संकल्प मन्त्र का सिर्फ इतना भाग ही समझेंगे क्योंकि सभी रहस्य इसी में हैं।
“….अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतित मे कलियुगे, कलि प्रथम-चरणे…..,”
वर्तमान में, हम सभी को सिर्फ यह पता है की कलियुग चल रहा है, पर संकल्प में यह कौन सा कलियुग चल रहा है यह बताया गया है (जो हम आगे समझेंगे), कलियुग ४ लाख ३२ हजार वर्ष का होता है और कलियुग से पहले द्वापर युग होता है वह दोगुना अर्थात ८ लाख ६४ वर्ष का होता है, उससे पहले त्रेता युग कलियुग से तीन गुना और उससे पहले सतयुग कलियुग से चार गुना आयु ।
कलियुग का प्रथम चरण १ लाख ८ हज़ार वर्षों का होता है । अभी कलियुग के लगभग ५२०० वर्ष ही व्यतीत हुए हैं महाभारत युद्ध उपरांत भगवान् के अपने धाम जाने के बाद महाराज परीक्षित के शासन काल से कलियुग का प्रारम्भ हुआ था।
४ लाख ३२ हज़ार वर्ष का कलियुग, उससे दोगुना द्वापर, तीन गुना त्रेता, चौगुना सतयुग
इन चारो युगों के एक बार बीतने में ४३ लाख २० हज़ार वर्ष लगते है – इसको एक चतुर्युगी कहा जाता है
हज़ार बार चतुर्युगी बीतने पर एक कल्प होता है । एक कल्प ब्रह्मा जी का एक दिन होता है (उतनी ही एक रात्रि होती है तो पूरा दिन २ कल्प बराबर हुआ) ।
ब्रह्मा जी का एक दिन या कल्प – ४ अरब २९ करोड़ ,४० लाख ८० हज़ार वर्ष का होता है।

१ कल्प = १००० चतुर्युग = ब्रह्मा जी का एक दिन = ४ अरब, २९ करोड़ ,४० लाख ८० हज़ार वर्ष

आगे बढ़ने से पहले – अब तक हमने जो समझा उसका सारांश ! महत्वपूर्ण है !
• ब्रह्मा जी के एक दिन को कल्प कहते हैं,
• एक कल्प में चारों युग १ हज़ार बार बीत जाते हैं
• चार युगों को चतुर्युग कहते हैं, तो हज़ार चतुर्युग बीतने पर एक कल्प पूरा होता है
• चार युग हैं १) सतयुग- १७.२८ लाख वर्ष २) त्रेता युग- १२.९६ लाख वर्ष ३) द्वापर – ८.६४ लाख वर्ष ४) कलियुग – ४.३२ लाख वर्ष
• १ चतुर्युग ४३ लाख २० हज़ार वर्षों का और १००० चतुर्युग यानि एक कल्प ४ अरब २९ करोड़ ,४० लाख ८० हज़ार वर्ष का
सृष्टि के रहस्यों को समझने के लिए युगों की विशेषताएं समझना आवश्यक है (युग की आयु भी विशेषता ही है), हर युग में जन्मे जीवों में, पशु पक्षी मनुष्यों में भी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं ।
१ कल्प को १४ मन्वन्तरों में बांटा गया है ७१ चतुर्युगी का १ मन्वंतर होता है
हमारे एक दिन में १४ मुहूर्त रहते हैं और रात्रि में भी १४ मुहूर्त तो कुल २८ मुहूर्त और २ मुहूर्त की दोनों संध्या (दिन रात्रि) तो हमारे एक २४ घंटे के दिन में कुल ३० मुहूर्त हुए, उसी तरह ब्रह्मा जी के एक दिन-रात (अहोरात्र) में ३० मुहूर्त माने जाते हैं ।
इसी प्रकार ब्रह्मा जी के दिन में भी १४ मुहूर्त हैं, पुराणों में एक-एक मुहूर्त को एक-एक मन्वंतर कहा गया है, हर मन्वंतर का अलग नाम है और लगभग ७१ चतुर्युगों का १ मन्वंतर होता है। हर मन्वंतर की अपनी विशेषताएं होती है , १ मन्वंतर के बराबर इंद्र की आयु होती है (मतलब ब्रह्मा जी के एक दिन में १४ इंद्र बदल जाते हैं)
७१. ४५ चतुर्युग X १४ मन्वन्तर = १००० चतुर्युग = १ कल्प
आइये अब समझते हैं संकल्प मन्त्र का अर्थ
काल विवरण
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य, विष्णोः आज्ञया प्रवर्तमानस्य …ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतित मे कलियुगे, कलि प्रथम-चरणे, बौद्धावतारे
सर्व मंगलमय भगवान् विष्णु का नाम तीन बाद उच्चारण के पश्चात, भगवान विष्णु की महिमा का उल्लेख (श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य), भगवान विष्णु के आदेश से (विष्णोः आज्ञया)….
अद्य – आज , ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे – ब्रह्मा जी के आयु के दूसरे परार्ध में, (अर्थात ब्रह्मा जी की १०० वर्ष की आयु मानी गयी है एक दिन एक कल्प के माप से ३६० दिन (कल्प) का १ वर्ष, तो वर्तमान ब्रह्मा जी की आयु का ५० वर्ष का पहला परार्ध समाप्त हो चुका है अभी दूसरा परार्ध यानि ५१ वां वर्ष चल रहा है),
श्वेत वाराह कल्पे – ५१ वें वर्ष का पहला कल्प (दिन) का नाम है श्वेत वाराह कल्प
वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतित मे कलियुगे, कलि प्रथम-चरणे – और वर्तमान में वैवस्वत नाम का मन्वंतर चल रहा है और २८ वां चतुर्युग चल रहा है (अर्थात ब्रह्मा जी के ५१ वें वर्ष की शुरुआत हुई है और उनके पहले दिन (कल्प) के १००० चतुर्युग में से अभी २८ वां चतुर्युग चल रहा है अर्थात २७ चतुर्युग बीत चुके हैं और २८ वें चतुर्युग में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके हैं और कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है जिसके ५००० वर्ष बीत चुके हैं
संकल्प मन्त्र का अर्थ समझ गए तो रहस्य क्या है इसमें ?
वर्तमान काल: ब्रह्मा जी के आयु का दूसरा परार्ध…५१ वें वर्ष का पहला दिन (कल्प) जिसका नाम है श्वेत वाराह कल्प अभी शुरू ही हुआ है और वर्तमान में वैवस्वत नाम का मन्वंतर चल रहा है और २८ वां चतुर्युग चल रहा है…. (अर्थात ब्रह्मा जी के ५१ वें वर्ष की शुरुआत हुई है और उनके पहले दिन (कल्प) के १००० चतुर्युग में से अभी २८ वां चतुर्युग चल रहा है अर्थात २७ चतुर्युग बीत चुके हैं और २८ वें चतुर्युग में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके हैं और कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है जिसके ५००० वर्ष बीत चुके हैं ।
रहस्य जो स्पष्ट हुए अभी तक
1. सृष्टि अनादि है अनंत है अर्थात यह कब शुरू हुई और कब तक रहेगी यह कोई नहीं जानता, अर्थात हमेशा से ही थी और हमेशा ही रहेगी ( जब ब्रह्मा जी का १ दिन (कल्प) ४ अरब, २९ करोड़ ,४० लाख ८० हज़ार वर्ष का होता है और उतनी ही बड़ी रात तो,,, उनके १ वर्ष की, और सौ-वर्षो की ब्रह्मा जी की आयु की कल्पना मानवीय वर्षों में करना हमारे लिए असंभव हो जाता है।
2. महात्मा जन जब अपने उपदेश, प्रवचन में बोलते हैं की हमारे असंख्य बार, करोड़ों-अरबों बार मनुष्य जन्म हो चुका है, हम असंख्य बार ८४ लाख योनियों में भी जन्म ले चुके हैं… तब हमें बहुत विस्मय और संशय होता है और बहुत लोगों को तो अविश्वास भी होता है ….काल विवरण समझने के बाद इस रहस्य से तो पर्दा उठ ही गया की कम से कम इतने जन्म लेने के लिए जितना समय चाहिए उसकी कोई कमी नहीं है काल के पास अर्थात इतने जन्म लेने के लिए तो ब्रह्मा जी का एक दिन ही काफी है।
सृष्टि के अनेकों रहस्य –
युग की विशेषताओं और उस युग में जन्मे जीवों की विशेषताओं में हैं
मन्वंतर और उसके अधिकारी
चारों युग मिला कर १ चतुर्युग, ७१ चतुर्युग का एक मन्वंतर – मन्वंतर बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्रह्मा जी के १ दिन (कल्प) में १४ मन्वंतर बदलते हैं और ये बहुत बड़े परिवर्तन होते हैं क्योंकि हर मन्वंतर के पांच अधिकारी होते हैं (भागवत के अनुसार ६ अधिकारी), ये अधिकारी अपने मन्वंतर के अंतराल में सभी कार्य भार संभालते हैं और इन सभी अधिकारियों में भगवान् विष्णु की ही शक्ति और सामर्थ्य क्रियाशील रहता है। ये पांच अधिकारी हैं –
१) मनु, २) सप्तऋषि ३) देव ४) देवराज इंद्र ५) मनु-पुत्र श्रीमद भागवत में श्री हरी के अंशावतार की कल्पना कर के १ अधिकारी की वृद्धि की गयी है।
– ये पांचो अधिकारी हर मन्वन्तर में बदल जाते हैं – अर्थात ब्रह्मा जी के एक दिन (कल्प) में १४ सप्तऋषि, १४ इंद्र, १४ देव और १४ मनु आदि होते हैं, इन अधिकारियों की आयु एक मन्वंतर की होती है
– हर चतुर्युग समाप्त होने पर वेद लुप्त हो जाते हैं और नए मन्वंतर में वेदो का प्रवर्तन (enforcement ) आवश्यक हो जाता है जो सप्तऋषि करते हैं, मनु शासन न्याय आदि व्यवस्था के अधिकारी हैं, देवराज इंद्र संसार वृद्धि आदि कार्य, वृष्टि आदि के अधिकारी, और मनु -पुत्र क्षत्रिय राजा हैं जो पृथ्वी का पालन और प्रजा का संरक्षण करते हैं।
वर्तमान मन्वंतर – वैवस्वत चल रहा हैं जिसके मनु सूर्य (विवस्वान) के पुत्र महा तेजस्वी श्राद्धदेव हैं
आदित्य, वसु, रूद्र, विश्वेदेव, मरुदगण, अश्विनौ और ऋभु – देवगण हैं , देवराज इंद्र का नाम पुरंदर है और कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा भारद्वाज सप्तऋषि हैं।
पाश्चात्य वैज्ञानिक भी सनातन काल गणना की सत्यता मानने लगे हैं!
प्रारंभ में पाश्चात्य वैज्ञानिक सृष्टि को सिर्फ ५००० साल तक पुराना का ही मानते थे, और हमारे शास्त्रों और विद्वानों का उपहास भी करते थे, लेकिन जब अपने ही वैज्ञानिक तकनीकों से उन्होंने जाना की ५००० वर्ष नहीं सृष्टि लाखों वर्ष पुरानी है, फिर जब भूमि से प्राप्त वस्तुओं की आयु पता करने के यांत्रिक साधन हुए, रेडियम आदि का आविष्कार हुआ तब वे भी मानने लगे की सृष्टि लाखों करोड़ों नहीं बल्कि अरबों खरबों वर्ष पुरानी है।
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भाग -१ में यहाँ तक हमने युगों के बारे में जाना और सृष्टि के कुछ रहस्य जाने जो की सनातन धर्म में काल – गणना से प्रकट होते हैं।
भाग २ में हम जानेंगे –
१) हर युग की क्या विशेषताएं हैं और अलग-अलग युग में जीवों की क्या विशेषताएं होती हैं।
२) सृष्टि पांच तत्वों से बनी है उसमें जल, वायु, पृथ्वी, तेज (अग्नि) – जो चार तत्व हैं, उन्हें तो हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं उनसे हमारा ९५% से भी अधिक शरीर बना होता है, लेकिन सबसे रहस्यमयी तत्व है “आकाश तत्व”। आकाश तत्व के परिणाम से युगों के भेद से, मानवीय शक्तियों में और अन्य चेतन जीवों में अनेक चमत्कारी प्रभाव देखने को मिलते हैं।
३) युगों के परिवर्तन से मनुष्य एवं अन्य सभी जीव जंतु पशु पक्षी आदि के इन गुणों में प्रभाव पड़ता है – आयु, आकार, प्राण एवं प्रज्ञा (बुद्धि ज्ञान, विवेक) शक्ति, धर्म पालन, सत्य भाषण इत्यादि
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Refrences:
1) Puran parishilan book by Shri Pandit Giridhar Sharma Chaturvedi, Publisher-Bihar Rashtbhasha parishad, Patna.
2) Puran Vimarsh Book By Acharya Baldev Upadhyay, Publishers- Chawkhamba Vidhyabhawan, Varanasi.
3) Brahmand Puran
4) Saarvbhawm Sanatan Siddhant -book, By Pujyaniya Puri Shankaracharya, shrmd jagatguru Shankaracharya swami shri Nishachalanand Sarasvati ji.