
भाग्य को ही हम प्रारब्ध, दैव, होनी, विधि का विधान, नियति, तकदीर, नसीब, fate, destiny आदि नामों से जानते हैं।
इस लेख में हम समझेंगे भाग्य या प्रारब्ध के क्या सिद्धांत हैं सनातन धर्म शास्त्रों में और इस जानकारी से हम कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए ।
भाग्य या प्रारब्ध विषय पर आगे बढ़ने से पहले कुछ सत्य जो जानने आवश्यक है!
• पृथ्वी पर सृष्टि अनादि अनंत है यानी न सनातन धर्म संस्कृति का प्रारम्भ कोई बता सकता है न अंत
• ८४ लाख योनियां जो शास्त्रों में बतायी हैं उन सभी योनियों में हम सभी का असंख्य बार जन्म हो चुका है
• मनुष्य योनि में भी हमारा असंख्य बार जन्म हो चुका है
• ८४ लाख योनियाँ जिसमें पशु, पक्षी, कीट, पतंगा, पेड़, पौधे सभी आते हैं उनमें सिर्फ मनुष्य योनि ही कर्म योनि है बाकी सब भोग योनि
• कर्म करने का अधिकार और स्वतंत्रता सिर्फ मनुष्यों को ही है । बाकी जो योनियां है वो तो जब मनुष्य योनि में थे उसमें उन्होंने जो कर्म किये उनका ही फल भोग रहे हैं… पशु, पक्षी, कीट, पतंग, वृक्ष आदि की योनियां पाकर ।
प्रारब्ध सम्बंधित ज्योतिष विज्ञान की ऐसी सत्यता जिसके बारे में अधिकतर लोगों के मन में भ्रम रहता है-
जन्म समय का और जन्म कुंडली का इतना अधिक महत्त्व क्यों ?
– जन्म समय के अनुसार प्रारब्ध नहीं होता बल्कि प्रारब्ध के अनुसार जन्म समय मिलता है
हमारे जन्म होने के समय की जो ग्रह दशाएं हैं जिसके अनुसार कुंडली बनती है वो संयोग नहीं है अर्थात प्रारब्ध जानने के लिए जन्म कुंडली का महत्व इसलिए नहीं की हम उस समय जन्म लिए हैं बल्कि रहस्य की बात यह है की हमारा प्रारब्ध जन्म लेने से पूर्व ही सुनिश्चित होता है और हम अपने प्रारब्ध के अनुसार उन्हीं ग्रहदशाओं में जन्म लेते हैं … तो इस रहस्य को और अच्छे से समझने के लिए ये समझना जरूरी है की
(१) हमारा प्रारब्ध बनता कैसे है
(२) उसका क्या आधार है
(३) कौन बनाता है
हमारा प्रारब्ध कौन बनाता है, कैसे बनता है, उसका क्या आधार है?
भगवान् स्वयं बनाते हैं हमारा प्रारभ्ध, हमारे ही अनंत जन्मो के असंख्य कर्मों में से कुछ को छांट कर उनके (चुने हुए कुछ कर्मों के) फल भोगने के लिए , हमारे अपने ही असंख्य कर्म हमारे प्रारब्ध का आधार हैं
हमारे जन्म–जन्मांतर के असंख्य कर्म तीन प्रकार के होते हैं

अपने ही पूर्व जन्मो में किये कर्मों से वर्तमान शरीर का प्रारब्ध या भाग्य निश्चित होता है
अपने ही द्वारा पूर्व जन्मों में किये गए असंख्य संचित- कर्म जो अन्तर्यामी परमेश्वर के संकल्प से फल देना प्रारंभ कर चुके हैं उनको प्रारब्ध (भाग्य) कहते हैं।
योग दर्शन के अनुसार प्रारब्ध के तीन फल होते हैं ।
1. जाती – अर्थात जन्म किस योनि में होगा, मनुष्य हम हो गए, स्त्री पुरुष हो गए, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र, वर्ण मिल गया… तो जाती के अंतर्गत आने वाले प्रारब्ध के फल हमको जन्म के साथ मिल गए
2. आयु– स्वास-प्रश्वास की निश्चित अवधि अर्थात जन्म समय हमारी आयु कितनी होगी यह निश्चित होता है लेकिन मनुष्य योग प्राणायाम के अभ्यास से आयु बढ़ा सकता है।
3. भोग – सुख दुःख धन वैभव यश कीर्ति
प्रारब्ध बीज के समान है और पुरुषार्थ भूमि के समान । जिस प्रकार थैले में रखे हुए बीज अंकुरित नहीं होते , अनुकूल भूमि, जलवायु मिले तो ही अंकुरित होते हैं। उसी प्रकार अच्छे या बुरे सामान्य प्रारब्ध, प्रयत्न (पुरुषार्थ) करने पर प्रकट होते हैं। अगर बहुत प्रबल प्रारब्ध है तो कितना भी पुरुषार्थ करें वह फल देकर ही मानता है, हाँ अगर अनुकूल प्रारब्ध है तो पौरुष के द्वारा उसके और अच्छा किया जा सकता है और अगर प्रतिकूल प्रारब्ध है तो पौरुष के द्वारा उसे थोड़ा काम किया जा सकता है।
प्रारब्ध मंद, मध्यम और तीव्र कोटि के होते हैं । कभी-कभी सत्कर्म और पूजन अनुष्ठान के फलस्वरूप मंद और माध्यम कोटि के दुःख देने वाले प्रारब्ध शांत हो जाते हैं, जैसे प्रारब्ध में बिच्छू से काटने का योग है तो भगवान् की कृपा से वह चींटी के काटने से ही कट जाता है, कभी-कभी कुछ कठिन दुःसह प्रारब्ध भगवान् कृपा से स्वप्न में ही दुःख देकर कर्म फल पूरा कर देते हैं । भगवान् के स्मरण, भजन, पूजन जप-तप से तीव्र प्रारब्ध भी शांत हो सकते है ।
जीवों की प्रारब्ध भोगने की बाध्यता!
• वृक्ष लताएं पेड़ पौधे भी जीव होते हैं ८४ लाख योनियों में आते है वे सब पूरी तरह से प्रारब्ध के अधीन ही होते हैं, कोई कर्म /पुरुषार्थ करने लायक उनका शरीर ही नहीं इसलिए इन प्राणियों का जीवन 99% प्रारब्ध के अधीन ही होता है ।
• चींटी, चिड़ियाँ, अन्य पशु, जीव-जंतु आदि जो जंघम प्राणी है ये चल फिर सकने के कारण प्रतिकूल परिस्तिथिओं में अपना बचाव करने में थोड़ा समर्थ होते हैं सर्दी गर्मी बरसात आदि में बचने के लिए ये प्रयत्न करते हैं, बरसात के पहले चींटियां अपने लिए खाने का समान आदि एकत्रित करके सुरक्षित जगह ढूंढ लेते हैं। ये जीव पूरी तरह से प्रारब्ध के अधीन नहीं । ये जीव कठिन परिस्तिथि में बहुत सर्दी गर्मी बरसात में अपने बचाव के लिए कुछ करने में समर्थ होने के कारण प्रारब्ध भोगने के लिए पूरी तरह बाध्य नहीं हैं।
• मनुष्य ही केवल ऐसा जीव है जिसकी प्रारब्ध पर अधीनता अन्य जीवों की तुलना में बहुत कम है । मनुष्य चाहे तो बुरे प्रारब्ध को कम कर सकता है पूजन, अनुष्ठान, जप, तप, आदि पुरुषार्थ से, अनुकूल प्रारब्ध को और अच्छा बना सकता है। सबसे महत्वपूर्ण केवल मनुष्य ही इसी जन्म में भगवान् के शरणागत हो अपने पूर्व जन्मो के सभी पाप पुण्य नष्ट कर भगवान् की प्राप्ति कर सकता है।
कर्म का बंधन अत्यंत जटिल है, कठोर से कठोर साधन से भी उससे छूटना बहुत ही कठिन हैं
हम कुछ न कुछ कर्म हमेशा करते हैं , एक क्षण भी बिना कुछ किये नहीं रह सकते, वो कर्म या तो शुभ होगा या अशुभ… ये सब क्रियमाण कर्म हैं, इन सभी क्रियमाण कर्मों के फल तुरंत नहीं मिलते, ये असंख्य क्रियमाण कर्म संचित कर्मों में जमा हो जाते हैं, और असंख्य संचित कर्मों के कुछ अंश से हमारे वर्तमान शरीर का प्रारब्ध बनता है । प्रारब्ध भोगने से ही कटता है … वर्तमान शरीर का हम प्रारब्ध भोगने के साथ साथ नए क्रियमाण कर्म भी करते जा रहे हैं और वो संचित कर्मों में लगातार जमा हो रहे हैं ।
ज्ञान कर्म और उपासना के जो साधनों का सनातन-धर्मशास्त्रों में निरूपण है (सांख्य, योग, ज्ञान, कर्म काण्ड, उपासना, भक्ति, जप, तप, पूजन अनुष्ठान) वह जीवों के परम कल्याण के लिए ही है । लेकिन वर्तमान समय की जो विकट परिस्थिति है हम केवल इन साधनों का आश्रय लेकर कर्म बंधनों से छुटकारा नहीं पा सकते।
संचित कर्मों का इतना विशाल, इतना अनंत गोदाम है की उनसे हमको कभी छुट्टी मिल ही नहीं सकती इन साधनों से , अगर छुट्टी मिल गयी होती तो वर्तमान जन्म ही नहीं होता ।

कितना विशाल है संचित कर्म गोदाम ?
संचित कर्मों का संचय बहुत विशाल है आप इसको उदाहरण से समझें की
मान लीजिये हमारे संचित कर्मों की संख्या १ लाख करोड़ है, भगवान् ने १ लाख करोड़ में से २०० पाप पुण्य कर्म निकाल कर हमारा वर्तमान शरीर बना दिया ये २०० पाप पुण्य हम इस शरीर से भोगेंगे और सभी २०० कर्म फल भोगने के बाद मृत्यु निश्चित होगी, इसका अर्थ यह हुआ किया हमारे इस जन्म में हमने १ लाख करोड़ में से सिर्फ २०० कर्म भोग कर नष्ट किये ।
इस तरह से अगर कर्मों को भोग करके नष्ट करेंगे तो कितने जन्म लेने पड़ेंगे …अर्थात सभी संचित कर्म साधनो के द्वारा या भोग कर कभी नष्ट नहीं किये जा सकते हम लाखों करोडो बार जन्म लेते रहेंगे और नए कर्म करेंगे जिनसे संचित कर्म और बढ़ेंगे
तो कैसे बचें कठिन प्रारब्ध से अगर सभी साधन भी असमर्थ है ?
सर्वप्रथम संचित कर्म नष्ट होना अनिवार्य है –
संचित कर्म इतना बड़ा गोदाम है की अरबों-खरबों मनुष्य जन्मो के हमारे पाप-पुण्य कर्म, बिना भोगे हुए जमा हैं, उनसे थोड़ा-थोड़ा निकाल कर हमारे जन्म होते रहेंगे, प्रारब्ध रूप में हम उन जन्मो में कर्म फल भोगते रहेंगे और नए कर्म (क्रियमाण) करते रहेंगे और संचित कर्मों में और पाप-पुण्य जमा करते रहेंगे हर जन्म में … तो इस तरह से तो कभी हम कर्म बंधन से मुक्त हो ही नहीं सकते, चाहे जितने वृत, उपवास, तीरथ, पूजन, अनुष्ठान, जप, तप, योग कर लें
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥44॥
यह चौपाई रामचरितमानस के सुन्दर-कांड से है, जिसमे भगवान का वचन है कि यदि किसी पर करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या का दोष हो और वह भी मेरी शरण में आ जाए, तो मैं उसे भी नहीं त्यागता। जब कोई जीव मेरी ओर सम्मुख होता है, तो उसके करोड़ों जन्मों के पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं।
संचित कर्मों को नष्ट सिर्फ भगवान् की कृपा ही कर सकती है उनकी शरणागति से ही यह संभव है। अगर आप सफलता से शरणागत हो गए (जो गुरु कृपा से दीक्षा द्वारा भी हो सकते हैं) तो आपका बहुत बड़ा काम हो गया संचित कर्म सब भगवान् कृपा से नष्ट हो गए ।
भगवान् की शरणागति ही सद्गति का मार्ग है ।
बिना सभी संचित कर्मो (पाप और पुण्यों) के भस्म हुए (नष्ट हुए) भगवान् के लोक की प्राप्ति मोक्ष आदि की प्राप्ति असंभव है ।
हमारे अनंत जन्मो के संचित पुण्य और पाप कर्म ही बंधन का कारण होते हैं जिनके कारण जीव को अनेकों योनियों में बार-बार जन्म लेना पढ़ता है । इन अनंत संचित कर्मो को हम कभी भी भोग कर नष्ट नहीं कर सकते सिर्फ भगवान् की शरणागति प्राप्त करके उनकी कृपा से ही सभी पाप-पुण्यों का नष्ट होना संभव है ।
भगवत गीता में भगवान् का वचन है –
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।
सभी धर्मों को छोड़कर, मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, शोक मत करो
References:
- https://www.youtube.com/watch?v=aYb7k9vdsrE&t=238s
- https://www.youtube.com/watch?v=D5AQPF24fSw&t=6s
- https://www.youtube.com/watch?v=ZldRIrxbNHY
- https://www.youtube.com/watch?v=-9FoQU9LgDM