
जानिए सनातन धर्म
पूरे विश्व में बसे हिंदू जनों के लिए सनातन धर्म के विषय में उपयोगी और प्रमाणिक जानकारी देने हेतु यह ब्लॉग बनाया गया हैं सनातन धर्म पर वो सभी जानकारी यहाँ (knowsanatan2025.blogspot.com) मिलेगी जो सनातन धर्म अनुयायी
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२. जानना चाहते हैं
3. पूछना चाहते हैं
हिन्दुओं को सनातन धर्म विषय में सही एवं प्रामाणिक जानकारी जानना क्यों आवश्यक है?
Know sanatan ब्लॉग सारे विश्व में बसे हिन्दुओं के परिवारों और उनके संतानों के भले के लिए सनातन धर्म के बारे में सही और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु एक प्रयास है, विदेशों में बसे अधिकतर परिवार हमारी संस्कृति संस्कार आदि भूल चुके हैं , उनकी सन्तानों को ये भी ज्ञान नहीं की होली दीपावली रक्षाबंधन आदि त्योहारों का, वेद भगवत-गीता आदि ग्रंथों का क्या महत्त्व है I
आजकल सूचना अधिभार जिसे “Information Overload” भी कहते हैं, यह एक बहुत बड़ी समस्या है whatsapp, Facebook aur internet में इतने लोग मिथ्या भाषण करते हैं और बिना किसी शास्त्रीय प्रमाण के कुछ भी प्रयोग उपाय आदि बताते हैं सिर्फ अपनी प्रसिद्धि और धनार्जन के लिए जिससे की बहुत लोग अपना नुकसान भी कर लेते हैं लाखों रूपए व्यर्थ के दिखावे और पूजन आदि में खर्च कर देते हैं जिनका कोई लाभ नहीं मिलता
सनातन धर्म और हमारी सांस्क्रतिक धरोहर अत्यंत प्राचीन और उन्नत है I अनेकों रहस्य, जीवन यापन के तरीके, यम नियम, योग जो हमारे प्राचीन वेद, शास्त्र, उपनिषद और पुराणों में समाहित है उसका अगर हूम 10% भी अपने नित्य कर्म में अपना ले तो हमारी 90% रो़ज कि समस्याओं का हल बडी़ सरलता से हो जाये, किंतु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और उनकी ही शिक्षा पद्दति से हमारे बच्चों की पढायी-लिखाई के कारण हमारा प्राचीन विज्ञान बहुत ते़जी से लुप्त होता जा रहा है। हमारे देश के मूल्यवान ग्रंथों, वेद, शास्त्र में बहुत उन्नत प्राचीन विज्ञान समाहित है जिसे भूल कर हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से शारीरिक एवं मानसिक रोगों और विकृतियों के शिकार हो रहे हैं I
अज्ञानता वश हमारी संतान आज धर्म से विमुख है, अधिकतर बच्चों को नहीं मालूम की :
– कौन पंच-देव हैं जिनकी हमे पूजा करनी चाहिए
– कैसे पूजा करें
– घर में मंदिर कहाँ होना चाहिए
– वास्तु के बारे में ऊपरी जानकारी
– सामान्य जानकारी तिथि त्यौहार आदि की
– कौन से वो १६ संस्कार हैं (जिनमे मुख्य, नामकरण, यगोपवीत, विवाह आदि संस्कार हैं )
– योग पर सामान्य जानकारी
Know sanatan ब्लॉग में हम सभी जानकारी के शास्त्रों के प्रमाण के साथ देते हैं , और वही जानकारी देते है जो रोजमर्रा की जीवन में आपके लिए उपयोगी हो . हमारे धर्म ग्रन्थ वेद पुराण इतिहास आदि का इतना विशाल साहित्य है की एक जीवनकाल में १० % भी पढ़ना / जानना संभव नहीं हैI इसलिए शास्त्रों में, महापुरुषों के प्रवचनों में हम जो आपके काम का उपयोगी ज्ञान है वो बहुत ही सरल तरह से इस ब्लॉग के माध्यम से आपके पास पहुंचा रहे हैं I
धर्म क्या है
Google की परिभाषा के अनुसार
धर्म एक व्यापक अवधारणा है जो जीवन जीने के सही तरीके, नैतिक आचरण, और सामाजिक कर्तव्यों को संदर्भित करता है। यह एक व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें व्यक्तिगत, सामाजिक, और आध्यात्मिक पहलू शामिल हैं.
धर्म शाश्वत और निर्विवाद सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता और न ही चुनौती दी जा सकती है, सरल शब्दों में कहें तो “आम का पेड़ आम का फल देगा, यह उसका धर्म है, यह अमरूद या टमाटर नहीं देगा…” इसलिए धर्म पवित्र है और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। इसलिए, सनातन धर्म ही एकमात्र धर्म है, शाश्वत सत्य है और एकमात्र सत्य है जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता।
1. जहाँ भी धर्म प्रत्यय का प्रयोग किया गया है वह गलत है, आइये इसे सनातन धर्म के सिद्धांतों के कुछ और उदाहरणों से समझते हैं
- पूरी दुनिया और सभी जानवर, पेड़ पौधे और मनुष्य पंच तत्व (5 तत्वों) से बने हैं… हिंदू धर्म में निर्जीव माने जाने वाले ये तत्व पवित्र हैं – वायु, जल, अग्नि, आकाश और पृथ्वी जिनकी हम पूजा करते हैं। इन तत्वों के प्रति अपना आभार व्यक्त करने और उनका दुरुपयोग न करने के लिए इन तत्वों की पूजा करने के लिए पूजा प्रक्रियाएँ और यज्ञ होते हैं। अगर हम वेदों और सनातन धर्म के सिद्धांतों की शिक्षाओं का पालन करते तो इतना वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, वनों का विनाश, प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी नहीं होती और बड़ी आपदाएँ नहीं होतीं। हम हर उस तत्व का दोहन कर रहे हैं जो हमारी प्रकृति, हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है
- ज्योतिष विज्ञान: ज्योतिष एक निर्विवाद और सटीक विज्ञान है, जो आधुनिक खगोल विज्ञान, कृषि, पौधों पर आधारित चिकित्सा और यहां तक कि जलवायु/मौसम पूर्वानुमान/भविष्यवाणियों से कहीं अधिक उन्नत है । कोई आश्चर्यचकित हो सकता है लेकिन आज पूरी दुनिया अपने कैलेंडर, सप्ताह में 7 दिन, 12 महीने, वर्ष में 365 दिन के लिए सनातन धर्म के ज्योतिष के योगदान पर फल-फूल रही है… यह सब सनातन धर्म शास्त्र से लिया गया है । इन कथनों को 100% सत्य और निर्विवाद मानने के लिए आप भारत के सुदूरतम गांव के किसी भी ब्राह्मण पंडित का उदाहरण ले सकते हैं, 50 साल या 100 साल बाद, आप जो भी तारीख बताएं, वह आपको सटीक विवरण के साथ ग्रहों की स्थिति बता सकता है, वह आपको बता सकता है कि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण कब होगा… बिना किसी कंप्यूटर या उपकरणों का उपयोग किए, ज्योतिष विज्ञान के सनातन धर्म सिद्धांतों के आधार पर पंचांग नामक पुस्तक का उपयोग करके।

सनातन धर्म
जिसको सारे विश्व में हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है वह असल में सनातन धर्म या वर्णाश्रम धर्म कहलाता है।
सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म का कहा जाना कुछ सदियों पहले ही शुरू हुआ जिसका कारण ईरानी निवासी हैं जो “स” का उच्चारण ” ह” किया करते थे और वैदिक काल में हमारे पूर्वज चूकि सिंधु नदी के पार रहा करते थे तो ईरानी उन्हें सिंधु की जगह हिंदू कहते थे बाद में मुग़लों के शासन काल में मुग़ल भी भारतवासियों को हिंदू कहने लगे।
सनातन का अर्थ है जिसका न आदि (प्रारंभ) है न ही अंत अर्थात जिसकी उपस्थिति हमेशा से ही या सृष्टि के आरंभ से ही हो । इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है की अन्य सभी मत और पंथ किसी मनुष्य के द्वारा स्थापित हुए जिन्होंने अपनी विचारधारा से अनुयायी बनाए। जबकि सनातन धर्म किसी मनुष्य के द्वारा शुरू नहीं किया गया।
सनातन का अर्थ तो समझना आसान है पर धर्म क्या है इसको समझना थोड़ा कठिन है कई विद्वानों के विचार में धर्म का अर्थ है “प्रकृति के नियम (laws of nature)” जिनका संबंध किसी सम्प्रदाय से नहीं है ये तो वो नियम है जो सृष्टि के आरंभ से जबसे जीवन की उत्पत्ति हुई तभी से हैं, और ये नियम सभी प्राणियों पर लागू होते है उदाहरण के लिए योग अभ्यास वह विज्ञान है जो मनुष्य शरीर को प्रकृति के अनुरूप कर स्वस्थ रखता है चाहे उस मनुष्य का कोई भी धर्म हो…योग की ही तरह आयुर्वेद और ज्योतिष विज्ञान भी मानवता को सनातन धर्म ग्रंथों की ही देन है।
पुरातन ऋषि मुनियों ने तो प्रक्रति के इन नियमों को योग और तपोबल से जाना और उससे ही प्राचीन विज्ञान की उत्पत्ति हुई। प्रकृति के नियमों को समझने का अर्थ है
1. हमारे सौर्य मंडल का ज्ञान, पंचांग, वर्ष, मास, तिथि, वार, ऋतु, राशि, नक्षत्र के ज्ञान से ही मनुष्य के सभी क्रिया-कल्प संभव होते हैं
2. चंद्रमा, सूर्य और दूसरे ग्रहों के पृथ्वी पर जीवों पर प्रभाव (जो ज्योतिष का विषय है)
3. योग विज्ञान जो आदर्श जीवन यापन की पद्धति है,
4. वनस्पति विज्ञान औषधि और रोग आदि की जानकारी
5. स्वस्थ जीवन के लिए आहार कैसा हो (सात्विक अथवा तामसिक)

सनातन धर्म को वर्णाश्रम धर्म भी कहा गया है।
सनातन धर्म की नींव है वेद। वेद विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिनके बारे में उपयोगी चर्चा हमने आगे की है। सनातन धर्म अनुयायी वेदों का अनुसरण करते थे जिसे वर्णाश्रम परम्परा या वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है । हिंदूओं की सही पेह्चान वर्णाश्रम है। वैदिक वर्णाश्रम धर्म का अनुसरण जब तक होता रहा भारतवर्ष में सभी लोग खुशहाल, स्वस्थ और समृद्ध थे ।
आधुनिक काल की सारी सामाजिक समस्यायें विदेशी आक्रांताओं का भारत पर लम्बे काल तक शासन है जिसके कारण वैदिक ज्ञान और वर्णाश्रम परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त हो गई।
वर्णाश्रम:
वेदों के अनुसार परमात्मा ने समाज के नागरिकों को उनके कार्य और गुणों के आधार पर चार वर्णों में विभाजित किया जो इस प्रकार हैं
चार वर्ण और उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी
1. ब्राह्मण – बुद्धिजीवी, पुरोहित, वेदों का ज्ञान रखने वाले, शिक्षक, सदाचारि वर्ग को ब्राह्मण का पद प्राप्त होता था जो समाज के सभी वर्गों के मार्ग प्रदर्शक भी हुआ करते थे।
2. क्षत्रिय – साशक, राजा, रक्षक, युद्धकला में निपुण आदि व्यक्तियों को क्षत्रिय कहा जाता था
3. वैश्य – व्यापारी वर्ग
4. शूद्र – ऊपर लिखे सभी कार्यों के अलावा और कोई भी कार्य करने वालों को शूद्र कहा जाता था
वर्णाश्रम व्यवस्था में व्यक्ति के गुण और कार्य / व्यवसाय के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र की संज्ञा दी गयी थी। इन चार वर्णों के अलावा कुछ और वर्ण थे जो कि असभ्य, अपराधिक या असामाजिक प्रवत्ति के कारण राक्षस, दस्यु या चांडाल आदि कहलाते थे।
वर्ण व्यवस्था समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत कारगर थी लेकिन आज के आधुनिक युग में इसको जाती प्रथा के साथ जोड़ कर उसका अर्थ बिलकुल ग़लत समझा है। वर्ण का जाती से कोई सम्बंध नहीं । वर्ण तो व्यक्ति के गुण, कार्य/ व्यवसाय और उसकी रुचि के संज्ञक थे, सभी वर्ण महत्वपूर्ण थे और सभी वर्णों को समाज में सम्मान प्राप्त था। आज के आधुनिक समाज में जातीवाद के कारण जो समाज में बुराइयाँ (छुआ छूत या भेद भाव ) व्याप्त हैं, वर्णाश्रम व्यवस्था में नहीं थीं।
चार आश्रम
आश्रम व्यवस्था व्यक्ति की आयु १०० वर्ष को आधार मान कर मनुष्यों के जीवनकाल को चार अवस्थाओं (आश्रम) में बाँटा गया था।
1. ब्रह्मचर्य आश्रम – २५ वर्ष तक की आयु तक ज्ञानार्जन (विध्या ग्रहण करना) ही प्रमुख कार्य होता था।
2. ग्रहस्त आश्रम – जैसा कि नाम से ही पता पड़ता है २५ से ५० वर्ष की आयु व्यक्ति को विवाहित जीवन के लिए उपयुक्त बताया गया है
3. वानप्रस्थ आश्रम – ५० वर्ष की आयु के पश्चात, ग्रहस्त जीवन त्याग कर अपने परिवार के प्रति सभी कर्तव्यों को पूरा कर और सारी ज़िम्मेदारियों को अपने बच्चों के हाथ दे कर वन प्रस्थान करना चाहिए। वन का अर्थ असल में घने जंगल में जाना नहीं था बल्कि ईश्वर ध्यान और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए और समाज कल्याण के कार्यों के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम जो शहर या क़स्बों से दूर शांत स्थानो या वनों में होते थे वहाँ प्रस्थान करने को वानप्रस्थ आश्रम कहा जाता था
4. सन्यास आश्रम – ७० साल के उपरांत त्यागी सन्यासी की तरह जीवन यापन करना उपयुक्त बताया गया था।