कामना पूर्ति हेतु किये जाने वाले अधिकतर पूजन अनुष्ठान क्यों होते असफल?

अधिकतर पूजन- अनुष्ठान क्यों नहीं होते सफल ?

विश्व भर में सनातनी हिन्दू जन पूजा पाठ हवन अनुष्ठान इत्यादि करते है, अधिकतर पूजन आदि कुछ कामना की पूर्ति के लिए ही किया जाता है । जो नित्य पूजन घर के मंदिर में किया जाता है उसमें भी भगवान् की कृपा बनी रहे ….ये कामना तो रहती ही है ।

बड़- बड़ी कामनाओं की पूर्ति के लिए बड़े-बड़े अनुष्ठान किये जाते हैं खूब धन भी खर्च किया जाता है तब भी

क्यों अधिकतर कामनाएं नहीं पूर्ण होतीं ?

वेद में ८० % कर्मकांड है और कामना पूर्ति हेतु किये जाने वाले सभी पूजन अनुष्ठान कर्मकांड के अंतर्गत  आते हैं , इससे मानव जीवन में कर्म काण्ड की उपयोगिता तो सिद्ध होती है, लेकिन सही जानकारी / सामग्री आदि के अभाव में इसका लाभ बहुत विरले ही कोई उठा पाते हैं।

कर्मकांड में शास्त्रोक्त विधि-निषेध पालन और श्रद्धा अत्यंत आवश्यक

भगवत गीता में भगवान् के वचन हैं –

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् | श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते || १७/१३ ||

अगर विधि का पालन ठीक प्रकार से नहीं हुआ, दक्षिणा ठीक से नहीं दी गयी, भोजन, प्रसाद आदि नहीं ठीक से दिया गया (सभी के विधि निषेध और नियम हैं कर्मकांड के प्रयोगों में ), मंत्रोच्चारण त्रुटिपूर्ण है और श्रद्धा भी उतनी नहीं है, तो वह यज्ञ /पूजन सब तामस यज्ञ हो जाता है ।

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः । न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥१६/२३ ॥

जो मनुष्य शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी इच्छानुसार स्वच्छन्दाचरण करता है। वह न तो सिद्धि पाता है, न  परमगति पाता है, अथवा न सुख ही पाता है ।

अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् ।असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥17/28॥

हे पार्थ ! बिना श्रद्धा से ही किया गया हवन, दिया हुआ दान, आचरित तप या जो कुछ भीकिया गया कार्य है, वह सब ‘असत्’ ही कहा जाता है। इसलिए वह न तो इस लोक में लाभदायकहोता है, न मरने के बाद भी लाभदायक हो सकता है।

कर्मकांड में विधि-निषेध पालन, दान-दक्षिणा, द्रव्य / सामग्री की शुद्धता, मंत्रोच्चारण और श्रद्धा आदि का बहुत अधिक महत्त्व है, अन्यथा अच्छे फल तो दूर कभी-कभी उलटे फल या दुष्परिणाम भी भोगने पड़ सकते हैं ।

पूजन यज्ञ आदि का विफल होना और दुष्परिणाम मिलने का कारण है – अश्रद्धा

इस तामस यज्ञमें “यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः”(गीता १६ । २३ ) और “अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्” (गीता १७ । २८ ) – ये दोनों भाव होते हैं। अतः वे इहलोक और परलोकका जो फल चाहते हैं? वह उनको नहीं मिलता –न सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्? न च तत्प्रेत्य नो इह। तात्पर्य है कि उनको उपेक्षापूर्वक किये गये शुभकर्मोंका इच्छित फल तो नहीं मिलेगा? पर अशुभकर्मों का फल (अधोगति) तो मिलेगा ही — अधो गच्छन्ति तामसाः (१४ । १८ )। कारण कि अशुभ फलमें अश्रद्धा ही हेतु है और वे अश्रद्धा-पूर्वक ही शास्त्र विरुद्ध आचरण करते हैं अतः इसका दण्ड तो उनको मिलेगा ही। इन यज्ञों में कर्ता? ज्ञान? क्रिया? धृति? बुद्धि? सङ्ग? शास्त्र? खानपान आदि यदि सात्त्विक होंगे? तो वह यज्ञ सात्त्विक हो जायगा यदि राजस होंगे? तो वह यज्ञ राजस हो जायगा और यदि तामस होंगे? तो वह यज्ञ,तामस हो जायगा ।

1.      कर्ता

                        i.      कर्मकांड में विधि और  निषेध का पालन बहुत महत्वपूर्ण होता है जो की कलयुग में सहीसही पालन करना लगभग असंभव है

                     ii.       कोई भी काम्य कर्म पूजन अनुष्ठान हो उसमे  यजमान (जो करवाता है )    और पंडित जी / पुराहित जी (जो कर्म करते हैं ) वे हुए कर्ता हुए , कर्ता के लिए बहुत नियम हैं जिनका पालन नहीं हो पाता

                  iii.      पुरोहित जी के लिए बहुत कठिन नियम हैं जो लगभग असंभव हैं (साधारणतयः जो सामान्य गृहस्थ है और शहरों में रहते हैं और पूजन अनुष्ठान करवाते हैं उनके लिए असंभव …क्योंकि उनको न ही सही पुरोहित मिल पाते हैं न ही उतनी श्रद्धा होती हैं जल्दीजल्दी निबटाने की भावना रहती है

                   iv.      यजमान – अपने वर्ण (ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र ) अनुसार आचरण करते हैं की नहीं ….ब्रह्मचर्य पालन शौच अशौच ….

                      v.     पुरोहित जी पंडित जी 

                                                              i.        गुरु परंपरा से कर्मकांड में शिक्षित और दीक्षित हैं ?

                                                           ii.        माता पिता दोनों ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हैं ?

                                                         iii.        शिखा तिलक जनेऊ धारण करते हैं और उनके नियम का पालन करते हैं ?

                                                          iv.        संध्या वंदन (गायत्री जप ) त्रिकाल करते हैं या कम से कम सुबह की संध्या करते हैं ?

 2.       क्रिया–  वृत आदि का उद्यापनजन्म से लेकर मृत्यु तक सभी सोलह संस्कारचंडी पाठगृह प्रवेश वास्तु पूजन इत्यादि इन सभी पूजन अनुष्ठानों में बहुत अलगअलग विधि और निषेध होते हैंजिनका पालन शास्त्रों के अनुसार ही करना पड़ता है . हवन/होम सभी पूजन के अंत में करने का नियम हैं और हर प्रकार के अनुष्ठान में हवन विधि में भी अंतर है  इनके जानकार पुरोहित बहुत दुर्लभ हैं

आईये विधि निषेध को साधारण उदाहरण से समझते हैं

एक टेबल पंखा चलाने के लिए उसका रेगुलेटर चालू किया तो चलेगा ?1 नहीं क्योंकि उसका प्लग ही नहीं लगाया स्विच में2 …..अच्छा प्लग स्विच में लगा दिया तो चलेगा ? नहीं,  क्योंकि स्विच का बटन ऑफ है3 चलो पंखे का रेगुलेटर चालू किया प्लग लगा दिया स्विच मेंस्विच आन कर दिया अभी भी पंखा नहीं चलेगा4 क्यों ?? क्योंकि करंट सप्लाई नहीं आ रही स्विच में …. चलिए करंट भी आ गया लेकिन अभी भी पंखा नहीं चला क्यों …क्योकि पंखा जाम हो गया है बहुत दिनों से बंद रखा है इसलिए ….ये तो सिर्फ विधि है पंखा चालू करने की ……

जब एक पंखा चलाने की प्रक्रिया में चार विधि हो गयींऔर चारों का पालन नहीं हुआ तो पंखा नहीं चलेगा तो कर्मकांड तो बहुत ही गुप्त वेदों के जानकार विद्वानों का विषय है 

अभी निषेध भी समझिए

कहीं से वायर तो नहीं कटा है shock लग सकता है  , गन्दा तो नहीं है बहुत हवा के साथ धूल भी आएगी पंखे के wings के ऊपर जाली है की नहीं ? ऊँगली न कट जाये 

बिना उत्तम गुरु के या जानकार पुरोहित के अगर हम कोई कामना पूर्ति के लिए पूजा अनुष्ठान करेंगे विधि निषेध का सही सही पालन नहीं करेंगे तो पंखा कैसे चलेगा ….. मतलब आपको क्या फल मिलेगा बल्कि कभी कभी उल्टा फल और दुष्परिणाम भी मिलते हैं अश्रद्धा और अविधि से पूजा अनुष्ठान करने से ।

क्रिया के अंतर्गत महत्वपूर्ण विधिनिषेध – मुहूर्त आदि का विचारमंत्रोच्चारण श्रद्धा विश्वास की कमीब्रह्मचर्य पालन सात्विक आहारशुद्धि

 3.       द्रव्य

अत्यंत  महत्वपूर्ण –

सभी वो वस्तुएं जो पूजन में विधि के अनुसार उपयोग की जाती हैं  वो द्रव्य कहे गए हैं इसमें जलपात्र, पुष्प गंध, नैवेद्य, हवन सामग्रीगौ घृत (घी ) समिधा इत्यादि सभी आते है 

आप कैसे निर्णय करेंगेजांच करेंगे  –

•       जितने भी गौ घृत (गाय के घी ) बाजार में मिलते हैं क्या वे सभी शुद्ध  हैं?

•       क्या गारंटी है की वो गाय के दूध से ही बना है ?(अधिकतर बेचने वाली companies गौ पालकों से खरीदते हैं और उनमें जर्सी पशु का भी दूध गाय का दूध माना जाता है जो की गाय है ही नहीं )।

•       पुष्प, हवन सामग्री में उपयोग आने वाले जौ चावल तिल आदि सभी द्रव्य बाजार से आते हैं कहाँ पैकिंग हुई किन लोगों ने कैसी अवस्था में उसे छुआ हमे कुछ नहीं पता होता और आजकल तो ready-made हवन सामग्री आने लगी है जिसमे क्या-क्या है किसी को नहीं पता हो सकता

•       समिधा किस पेड़ की है उसे पेड़ से तोड़ने के नियम होते हैं आजकल तो मुनाफे के लिए कोई भी लकड़ी पैकेट में भर कर बेचते हैं

•       समिधा तोड़ने के लिए -तिथि, काल, मन्त्र होते हैं बिना उसके हवन के लिए ऐसे ही लकड़ी तोड़ लाये तो क्या फल मिलेगा उल्टा देवता कुपित होंगे

•       जितनी कीमत में १ किलो गाय का घी बाजार में मिलता है उतने में तो सिर्फ दूध ही १ किलो घी बनाने के लिए नहीं आता  नकली घी से आहुति डालने पर क्या होता है – नकली और अशुद्ध द्रव्य देवता नहीं ग्रहण करते , वह राक्षसी शक्तियों को प्राप्त हो जाता है और इसलिए ही राक्षसी शक्तियों कि बढ़ोतरी होती है। ?

तो  क्या करें फिर पूजा पाठ अनुष्ठान करना छोड़ दें ?

नहीं ! कलियुग में तो भगवान् ने बहुत छूट दीं हैं

नित्य पूजन करें जो गुरु मन्त्र जप और स्तोत्र पाठ आप करते हैं करें और सब पूजन को अपने इष्ट देव को समर्पित कर दें, कामना पूर्ति हेतु कर्मकांड के विधिवत पूजन अनुष्ठान भी करें अगर सभी विधि निषेध जो कर्ता और पुरोहित के लिए हैं उसका यथोचित पालन हो सके और द्रव्य क्रिया आदि शुद्धता से हो पाए

भगवान् नाम जाप और कीर्तन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है !और कोई विधि नहीं है !!!

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